इस खबर को समझने के लिए पहले ये केस पढ़ें। 7 महीने पहले भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद राजकीय प्रेस के उप नियंत्रक (मुख्यालय) विलास मंथनवार को लोकायुक्त पुलिस ने हटाने के लिए लिख दिया था। बाद में उन्हें भोपाल में केंद्रीय मुद्रणालय शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन बीती 21 फरवरी को उन्हें मुख्यालय में ही खरीद-वितरण का जिम्मा दे दिया गया। यानी भ्रष्टाचार के आरोप के बावजूद एक तरह का प्रमोशन।
उमरिया एसडीएम तो 3 साल पहले भ्रष्टाचार करते रंगेहाथों पकड़े गए, लेकिन वे आज एडीएम हैं। ऐसे कई केस हैं, जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात को कमजोर कर रहे हैं। मप्र में लोकायुक्त पुलिस के 318 और ईओडब्ल्यू के 44 केस में आरोपियों के खिलाफ चालान सिर्फ इसलिए पेश नहीं हो रहे, क्योंकि अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिल रही है। अकेले लोकायुक्त पुलिस साल 2022 में कुल 358 केस की जांच पूरी कर चुकी है। इनमें 269 ट्रैप, 25 अनुपातहीन संपत्ति और 64 पद के दुरुपयोग के प्रकरण हैं।
घूस मांगने पर घिरे थे राज्य पुलिस अफसर, आज आईपीएस प्रमोटी
तत्कालीन एएसपी अनिता मालवीय और धर्मेंद्र छबई पर 4 साल पहले रेलवे थाना प्रभारी ने घूस मांगने का आरोप लगाया था। लोकायुक्त ने केस किया। कोर्ट के आदेश के बाद रीइन्वेस्टिगेशन जारी है, लेकिन इस बीच अनिता आईपीएस प्रमोट हो गईं और शिवपुरी बटालियन में कमांडेंट हैं, जबकि धर्मेंद्र भी आईपीएस बन गए।
भास्कर से अनीता ने कहा- केस खत्म हो गया है और फोन काट दिया। छबई का फोन काफी देर तक स्विच्ड ऑफ रहा।
रिश्वत में ट्रैप हुए थे एसडीएम, इन्वेस्टिगेशन के बीच प्रमोशन
उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली में पदस्थ एसडीएम नीलांबर मिश्रा व सुरक्षा गार्ड चंद्रभान सिंह को 24 जुलाई 2019 को क्रशर संचालन के बदले रिश्वत लेते लोकायुक्त रीवा की टीम ने पकड़ा था। अभी इन्वेस्टिगेशन चल रहा है, लेकिन इन्वेस्टिगेशन के बीच ही नीलांबर को पन्ना एडीएम बना दिया गया।
भास्कर से नीलांबर ने कहा- केस अभी चल रहा है, लेकिन नियमों के तहत मुझे प्रमोट किया गया है।
पहले एक जिला संभालते थे, केस के बाद रीवा संभाग मिला
लोकायुक्त ने 16 अक्टूबर 2019 को सहायक आबकारी आयुक्त आलोक खरे के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की शिकायत पर चार शहरों में छापा मारकर 100 करोड़ की संपत्ति का खुलासा किया था। कार्रवाई के वक्त खरे इंदौर में सहायक आयुक्त थे। अब वे रीवा के डिप्टी कमिश्नर हैं और 7 जिलों का प्रभार है।
भास्कर से आलोक खरे ने बात नहीं की, पर आबकारी आयुक्त ओपी श्रीवास्तव ने कहा- खरे को सिर्फ प्रभार दिया गया है।
भ्रष्टाचार में फंसे अफसर को मिली दोहरी जिम्मेदारी
राजकीय प्रेस के उप नियंत्रक (मु.) विलास मंथनवार पर 3 हजार रु. रिश्वत का आरोप लगा था। 9 मई 2022 को लोकायुक्त पुलिस ने केस दर्ज कर एक जुलाई 2022 को उन्हें हटाने को लिखा। 8 अगस्त को उन्हें केंद्रीय मुद्रणालय भोपाल में लगा दिया। जांच के बीच 21 फरवरी 2023 को उन्हें खरीद एवं वितरण प्रभार दे दिया।
नियंत्रक चंद्रशेखर वालिंबे बोले- प्रेस के उप नियंत्रक लॉरेंस दो साल के लिए उप महाप्रबंधक बनाए गए हैं, इसलिए विलास को जिम्मेदारी दी।
सिस्टम ऐसे बचाता है…
- सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) का आदेश है कि सिर्फ चार्जशीट पेश होने पर आरोपी को निलंबित कर सकते हैं। केस दर्ज होने के बाद तबादला।
- ट्रैप केस की जांच में डेढ़-दो साल लग जाते हैं। फिर अभियोजन स्वीकृति मांगी जाती है। यूं तो 4 महीने में स्वीकृति मिलनी चाहिए, पर ऐसा होता नहीं।
ज्यादा केस नगरीय आवास के, फिर जीएडी, पंचायत के सबसे ज्यादा नगरीय आवास और विकास विभाग के करीब 30, सामान्य प्रशासन और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के कुल 50, राजस्व विभाग के 20 और स्वास्थ्य विभाग के 15 से ज्यादा मामले लंबित होने से अफसर बच रहे हैं।
एक्सपर्ट व्यू- इन्वेस्टिगेशन की परमिशन नहीं देना ही बचाव है…
मप्र के रिटायर्ड लोकायुक्त डीजी अनिल कुमार के मुताबिक भ्रष्टाचार के केस में सरकार जानबूझकर परमिशन नहीं देती है तो अफसर को बचाने की नीयत है। इन्वेस्टिगेशन के बाद अभियोजन स्वीकृति मिलती है। इसके बाद कोर्ट सजा तय करता है। ऐसे में परमिशन जल्दी देनी ही चाहिए, ताकि चालान में देरी न हो। देरी वजह से केस कमजोर ही होता है।
स्वविवेक यानी मनमर्जी
भ्रष्टाचार के आरोपियों पर सिस्टम की लचर कार्रवाई के सवाल पर एसीएस विनोद कुमार कहते हैं कि ऐसे केस में जीएडी के पास स्व विवेक से आरोपों पर निर्णय लेने का अधिकार है। यानी जब तक इच्छा हो, तब तक अभियोजन की स्वीकृति रोक सकते हैं।