लाईव इंडिया ब्यूरो संजय कुमार संजय कुमार
चित्रकूट घटना 1992 दिल्ली के हिमायूं रोड पर स्थित कोठी नंबर 10 की है, वक्त शाम के लगभग 6:00 बजे का पंजाब का एक लड़का पार्क में काम कर रहा था, तो उसे अचानक संदेश मिला कि उसकी माता का देहांत हो गया है लड़के ने रोना शुरू कर दिया उसके रोने की आवाज सुनकर साहब बाहर आ गए और पूछा कि क्या हुआ तब बामसेफ के कुछ कार्यकर्ताओं ने बताया कि इस लड़के की माता का देहांत हो गया है इतना सुनते ही साहब ने बामसेफ के कार्यकर्ताओं को कहा कि इस लड़के के पंजाब जाने का फौरन हर तरह से प्रबंध किया जाए बामसेफ के कार्यकर्ताओं ने उसका किराए से लेकर हर तरह का प्रबंध करके उसे ट्रेन के रास्ते पंजाब की ओर रवाना कर दिया।उसी रात लगभग 8:30 बजे साहब रजिस्टर पर कुछ काम कर रहे थे, जो कि चुनाव कमिश्नर को उपलब्ध कराया जाना था काम करते-करते साहब ने पवन कुमार फौजी को जो कि हरियाणा के हिसार का रहने वाला था, जिसने साहब से प्रभावित होकर डिफेंस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था को कहा कि तू लकड़ी के स्केल से रजिस्टर पर मुझे लकीरें खींच कर देता चल लकड़ी का मोटा सा वह स्केल साहब ने खुद बनाया था जब फौजी रजिस्टर पर लकीरें खींचकर दे रहा था तब साहब ने भरे हुए मन से कहा कि देखो जब हम किसी मूवमेंट से जुड़ते हैं तब परिवार एक तरह से जैसे खत्म ही हो जाता है ,मिशन के खातिर जज्बात मारने पड़ते हैं ,जब जज्बात मर जाते हैं तब परिवार का अपमान भी सहना पड़ता है, साहब ने आगे और दिल को झकजोर देने वाले शब्द को कहते हुए कहा कि आज इस लड़के की मां नहीं रही और एक दिन मेरी मां को भी मर जाना है, यह भी क्या पता कि शायद मैं अपनी मां की चिता में लकड़ी भी ना डाल सकूं साहब के यह शब्द फौजी को अचरज भरे लगे, उसके बाद फौजी तीन दिन और साहब के साथ रहा और जाते-जाते साहब से लकड़ी का स्केल मांग कर ले गया, फौजी 13 साल तक साहब का भेंट किया हुआ स्केल झोले में डालकर जहां भी गया साथ ही लेकर गया।21 दिसंबर 2005 का फिर वह मनहूस दिन आया जिस दिन साहब कांशीराम जी की माता बिशन कौर का देहांत हो गया, इसे संयोग ही कहिए कि साहब के मुंह से सहज स्वभाव 1992 में निकले शब्दों, क्या पता मैं अपनी माता की चिता पर लकड़ी भी ना डाल सकूं के मुताबिक इधर माता का देहांत हो गया था और उधर उनका बेटा काशीराम नामुराद बीमारी से पीड़ित लगभग सवा दो साल से बिस्तर पर पड़ा मौत से जंग लड़ रहा था ,जब पवन कुमार फौजी साहब की माता विशन कौर के अंतिम संस्कार पर पहुंचा तब माता बिशन कौर की जलती चिता के पास खड़े होकर उसे साहब के 13 साल पहले कहे हुए अल्फाज याद आए, “क्या पता मैं अपनी माता की चिता पर लकड़ी भी ना डाल सकूं” फिर उसे उस वक्त याद आया कि 13 साल पहले साहब ने मुझे जो लकड़ी का स्केल भेंट किया था शायद वह इस मनहूस मौके के लिए ही भेंट किया था ,फौजी ने उसी वक्त लकड़ी का स्केल अपने झोले से निकाला और माता के चरणों की ओर खड़े होकर जलती हुई चिता पर कुछ यूं समर्पित किया ये लीजिए माताजी आपके बेटे द्वारा भेजा हुआ लकड़ी का टुकड़ा! क्या हुआ अगर आपका कांशीराम आज खुद चलकर लकडी डालने नहीं आ सका। लेकिन इस लकड़ी के टुकड़े को हाथ तो तेरे बेटे के ही लगे हुए हैं ।
धन्य है कांशीराम साहब
9अक्टूवर 2023 ,17वें परिनिर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन दिनेश कुमार आर्टिस्ट & बेसिक शिक्षक चित्रकूट