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राजनीतिक फैसले लेने में ज्यादा स्लो कौन?:गहलोत-पायलट मामला ढाई साल से पेंडिंग, BJP नहीं चुन पा रही नेता प्रतिपक्ष

गई है। यही वजह है कि सालों से पेंडिंग पड़े मसलों पर पार्टी प्रभारी भी कोई फैसला लेने से बच रहे हैं। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने इस स्थिति से निपटने का एकमात्र तरीका मसलों को टाले रखने के रूप में खोजा है।

इसका ताजा उदाहरण है राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष का पद। राजस्थान के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को 11 फरवरी को राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया था। इसके बाद से 20 दिन से ज्यादा का समय बीत जाने के बावजूद बीजेपी नेता प्रतिपक्ष नहीं चुन सकी है।

ये तो ताजा उदाहरण है मगर पिछले कुछ वर्षों में दोनों ही पार्टियों में कुछ ऐसा ही ट्रेंड दिखाई पड़ता है। उथल-पुथल से भरी रही राजस्थान की राजनीति में बीजेपी और कांग्रेस ने निर्णयों को पेंडिंग छोड़ने में ही भलाई समझी है। हालांकि, इस मामले में बीजेपी की स्थिति कांग्रेस से ज्यादा बेहतर रही है। कुछ मसलों को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी आमतौर पर कांग्रेस के मुकाबले जल्दी निर्णय करती है। वहीं, कांग्रेस में इसे लेकर समय ज्यादा लिया जाता है।

ढाई साल से ज्यादा समय से कांग्रेस को फ्रेश कार्यकारिणी का इंतजार है। मगर हाईकमान गुटबाजी के चलते अबतक निर्णय नहीं कर पाया है।
ढाई साल से ज्यादा समय से कांग्रेस को फ्रेश कार्यकारिणी का इंतजार है। मगर हाईकमान गुटबाजी के चलते अबतक निर्णय नहीं कर पाया है।

5 महीने बाद भी धारीवाल-जोशी-राठौड़ पर निर्णय नहीं
25 सितंबर 2022 को राजस्थान में हुई इस्तीफा पॉलिटिक्स के बाद कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने तीन नेताओं मंत्री शांति धारीवाल, डॉ. महेश जोशी और आरटीडीसी चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को अनुशासनहीनता का दोषी मानते हुए नोटिस देते हुए जवाब मांगे थे।

तीनों नेताओं ने जवाब भी दिए मगर कांग्रेस हाईकमान इस मसले पर 5 महीने बाद तक भी निर्णय नहीं दे पाया। ना ही दोषियों पर कार्रवाई हुई ना ही उन्हें माफी मिली। पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट सहित उनके गुट के तमाम नेता लगातार कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। यहां तक की दोषियों पर निर्णय नहीं होने से परेशान होकर तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अजय माकन तक ने इस्तीफा दे दिया था।

32 महीनों बाद भी जिलाध्यक्षों पर निर्णय नहीं
जून 2020 में जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे। तब कांग्रेस ने पूरी कार्यकारिणी को भंग कर दिया था। उसके बाद से ढाई साल से ज्यादा का समय बीत गया। लगभग 32 महीने बाद भी कांग्रेस अपनी पूरी कार्यकारिणी नहीं बना पाई है।

पिछले दो महीनों में कांग्रेस ने ब्लॉक अध्यक्ष जरूर नियुक्त किए मगर जिलाध्यक्ष अब भी नियुक्त नहीं हुए हैं। वह भी तब है जब पिछले साल मई में उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में 90 से 180 दिनों के बीच तमाम राजनीतिक पद भरने का संकल्प लिया गया था। उसके बावजूद बगैर जिलाध्यक्षों के ही भारत जोड़ो यात्रा, हाथ से हाथ जोड़ो कार्यक्रम, राज्यसभा चुनाव, पंचायत चुनाव, निकाय चुनाव जैसे बड़े कार्यक्रम हो गए।

कांग्रेस को प्रदेश में लगभग 35 नए जिलाध्यक्ष नियुक्त करने हैं। माना जा रहा था कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले सूची आ जाएगी मगर ऐसा हुआ नहीं।
कांग्रेस को प्रदेश में लगभग 35 नए जिलाध्यक्ष नियुक्त करने हैं। माना जा रहा था कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन से पहले सूची आ जाएगी मगर ऐसा हुआ नहीं।

गहलोत-पायलट विवाद ढाई साल से अधर में
राजस्थान में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा निर्णय नेतृत्व बदलने को लेकर है। यहां भी कांग्रेस ढाई साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद यह तक निर्णय नहीं कर पा रही है कि 2023 विधानसभा चुनाव तक सीएम अशोक गहलोत ही रहेंगे या सचिन पायलट या किसी अन्य नेता को सीएम फेस बनाया जाएगा।

अशोक गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की सूचनाएं आने के बाद माना जा रहा था कि पायलट को राजस्थान का सीएम बना दिया जाएगा। मगर 25 सितंबर को हुए विधायकों के इस्तीफा प्रकरण ने सबकुछ बदल दिया। उस घटनाक्रम को भी 5 महीने से ज्यादा हो गया है मगर ना तो कांग्रेस हाईकमान यह क्लियर कर पाया है कि गहलोत ही सीएम रहेंगे ना ही पायलट या किसी अन्य नेता को सीएम बना पाया है।

साढ़े तीन महीने बाद हुआ इस्तीफों पर निर्णय
इसी तरह 25 सितंबर को दिए विधायकों के इस्तीफों पर भी 2022 पूरा बीत जाने के बावजूद इस मसले पर कोई निर्णय नहीं हो पाया। उप-नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने इसे लेकर कोर्ट में याचिका लगाई। उसकी सुनवाई पर आखिरकार इस्तीफे लौटाए गए। कोर्ट के सवाल का जवाब जब विधानसभा सचिव ने दिया तो पता चला कि इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे। जानकारों का यह कहना है कि अगर राजेंद्र राठौड़ कोर्ट में नहीं जाते तो यह मसला भी पेंडिंग ही पड़ा रहता।

कोर्ट को दिए जवाब में विधानसभा ने बताया था कि कुल 81 विधायकों ने इस्तीफे दिए थे, ये इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे।
कोर्ट को दिए जवाब में विधानसभा ने बताया था कि कुल 81 विधायकों ने इस्तीफे दिए थे, ये इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे।

प्रदेशाध्यक्ष पर 5 महीने से फैसला नहीं कर पा रही बीजेपी
निर्णय नहीं कर पाने के मामले में बीजेपी भी ज्यादा पीछे नहीं। राजस्थान की बात करें तो हालिया नेता प्रतिपक्ष के मसले के अलावा प्रदेशाध्यक्ष को लेकर भी बीजेपी शीर्ष नेतृत्व निर्णय नहीं कर पा रहा है। बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया के कार्यकाल को बढ़ाया जाए या नए सिरे से नए नेता को यह पद सौंपा जाएगा इस पर बीजेपी में असमंजस है। प्रदेशाध्यक्ष का कार्यकाल यूं तो 30 सितंबर को पूरा हो गया था। मगर इसे लेकर बीजेपी किसी निर्णायक स्थिति में नहीं पहुंच सकी है।

74 दिन खाली रहा था प्रदेश अध्यक्ष का पद
प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति पहले भी बीजेपी के लिए चुनौती से कम नहीं रही है। साल 2018 में भी तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी का कार्यकाल पूरा होने के बाद नया प्रदेश अध्यक्ष बनने में 74 दिन लग गए थे। तब जहां केंद्रीय नेतृत्व गजेंद्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष बनाना चाहता था, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे इसके खिलाफ थी। आखिरकार मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। इसमें भी शीर्ष नेतृत्व को काफी समय लगा। हालांकि, 2019 में सैनी के निधन के बाद डॉ. सतीश पूनिया को अध्यक्ष बनाने में हाईकमान को ज्यादा समय नहीं लगा था।

4 मार्च को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के जन्मदिन कार्यक्रम के साथ ही बीजेपी का जनाक्रोश आंदोलन भी होना है। यह पार्टी में खेमेबाजी साफ दिखाता है।
4 मार्च को पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के जन्मदिन कार्यक्रम के साथ ही बीजेपी का जनाक्रोश आंदोलन भी होना है। यह पार्टी में खेमेबाजी साफ दिखाता है।

अब नेता प्रतिपक्ष कौन होगा?
गुलाबचंद कटारिया को 11 फरवरी को राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया था, तब से लेकर नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है। बीजेपी नेताओं और सियासी जानकारों का साफ तौर पर कहना है कि पार्टी इस पद पर शीघ्र नियुक्ति के मूड में बिलकुल नहीं है। इसकी वजह भी साफ है, चुनावी साल में किसी भी किस्म की खेमेबाजी से बचने के लिए बीजेपी कोई निर्णय नहीं करना चाहती।

रंधावा बोले : मैंने तीन महीने में एआईसीसी-पीसीसी मेम्बर, ब्लॉक अध्यक्ष बनाए
कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से जब हमने कांग्रेस में निर्णयों को लेकर होने वाली देरी पर बात की तो उन्होंने कहा कि मैंने तीन महीने में एआईसीसी मेम्बर बना दिए, पीसीसी मेम्बर और ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बना दिए, क्या यह बड़ी बात नहीं है।

जिलाध्यक्षों पर भी काम चल रहा है। धारीवाल, जोशी और राठौड़ पर कार्रवाई को लेकर रंधावा ने कहा कि वो मेरे आने से पहले का मामला है और वह दिल्ली के स्तर पर है। रंधावा ने कहा कि जो काम 3 साल में नहीं हुई वा मैंने तीन महीने में किए हैं, धीरे-धीरे बाकी के पेंडिंग काम भी निपटा देंगे।

अरुण सिंह बोले : पार्लियामेंट्री बोर्ड निर्णय करेगा
इधर बीजेपी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह से जब हमने बीजेपी में नेता प्रतिपक्ष सहित अन्य नियुक्तियों को लेकर बात की तो उन्होंने कहा कि बीजेपी सही समय पर निर्णय करती है, पार्लियामेंट्री बोर्ड इसका भी निर्णय कर देगा।राजस्थान भाजपा 4 मार्च को दो कार्यक्रम एक ही दिन होने के बाद दो धड़ों में बंटी नजर आ रही है। सालासर चूरू में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपना जन्मदिन मनाएंगी। वहीं प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने सीएम हाउस घेराव का कार्यक्रम तय किया है।

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Author: liveindia24x7