मंडला। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. के.सी. सरोते ने बताया कि प्रत्येक वर्ष दिसंबर से फरवरी के महीने में शीत लहर का अधिक प्रभाव रहता है। शीत लहर, बारिश, कोहरा आदि द्वारा प्रभावित करने वाले मौसम संबंधी खतरों के रूप में उभर रहे हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार वैश्विक तापमान में विभिन्न मौसमों के दौरान काफी भिन्नताएं सामने आ रही हैं और उसका प्रभाव पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि, पशुधन, आजीविका, सामाजिक अर्थव्यवस्था और अन्य संबध्द क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु में वातावरण का तापमान कम होने (शीत लहर) के कारण मानव स्वास्थ्य पर अनेक विपरीत प्रभाव जैसे सर्दी जुखाम, बुखार, निमोनिया, त्वचा रोग, फेफड़ों में संक्रमण, हाइपोथर्मिया अस्थमा, एलर्जी होने की आशंका बन जाती है, यदि समय पर नियंत्रण न किया जाए तो, उस स्थिति में मृत्यु भी हो सकती है।
इन प्रभावों से बचाव हेतु शरीर को सूखा रखें। शरीर की गर्माहट बनाएं रखने के लिए सिर, गर्दन, नाक, कान, हाथ और पैर की उंगलियों को पर्याप्त रूप से ढकें। टोपी, हैट, मफलर तथा आवरण युक्त एवं जल रोधी जूतों का प्रयोग करें। सिर को ढकें क्योंकि सिर के ऊपरी सतह से शरीर की गर्मी की हानि होती है। यथासंभव घर के अंदर रहें और ठंडी हवा बारिश से संपर्क को रोकने के लिए अनिवार्य होने पर ही यात्रा करें। रोग प्रतिरोध क्षमता में वृद्धि के लिए विटामिन सी से भरपूर ताजे फल और सब्जियां खाएं। गर्म तरल पदार्थ नियमित रूप से पिए, जिसमें शरीर में गर्मी बनी रहेगी। बुजुर्ग नवजात शिशु गर्भवती माताऐं बीमार व्यक्ति तथा बच्चों का अधिक ध्यान रखें क्योंकि उन्हें शीत ऋतु के प्रभाव होने की आशंका अधिक रहती है।