धार ब्यूरो चीफ़ सुनील कुमार विश्वकर्मा
धार ज़िले में नीलगाय की समस्या गंभीर होती जा रही है। सरकार चुनाव में वोट लेने के तरीक़े तलाश रही है। इधर किसान की बोयी हुई फ़सल पर नीलगायों द्वारा पैरों तले रौंद कर नष्ट किया जा रहा है । सरकार की ग़लत नीतियों और अधिक बाँध बनाने के कारण आज यहाँ जंगली जीव मैदानी क्षेत्रों में किसानों की कड़ी मेहनत पर पानी फेर रहा है। नीलगाय के झुंड जिस खेत में से निकलते हैं। वहाँ पर दोबारा फ़सल खड़ी हो जाए ऐसा संभव नहीं। किसानों की इस समस्या को सरकार ने कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। अगर जल्द ही इसका हल नहीं किया गया तो खेती किसानी से कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सरकार के पास वनविभाग का इतना बड़ा अमला है कि उसकी महीने की तनख़्वाह हज़ारों करोड़ों में है। क्या उनको इस समस्या का समाधान पता नहीं है। उनके भरोसे जंगल को छोड़ा जंगल नहीं बचा और हज़ारों करोड़ वृक्षारोपण पर ख़र्च किए जाते हैं। लेकिन उन पैसों के गड्डे दिखाई देते हैं पोधे नहीं। इसलिए सरकार को अधिकारियों के भरोसे पर बैठकर समस्या का हल नहीं होने वाला है । इनका निराकरण है कि पशु खाद्य श्रृंखला के अनुसार इनका निस्तारण किया जाए। ताकि इन को बचाया भी जा सके और पशु खाद्य श्रृंखला से इन पर नियंत्रण भी रहेगा। यह काम गर्मी के मौसम में वन विभाग कर सकता है । इनको संरक्षित वन्य अभ्यारण में छोड़कर समस्या का समाधान भी हो जाएगा और इनकी सुरक्षा भी हो सकेगी । कोई असंभव काम नहीं है सरकार के पास पर्याप्त संसाधन हैं। अगर सरकार ने अधिकारियों की सलाह पर अधिक चलेगी तो यह समस्या कभी हल नहीं होगी। इन जंगली जीवों को और किसानों को दोनों को बचाना है यहाँ अधिकारियों की सलाह का ही परिणाम है कि आज यहाँ जंगली जानवरों परेशान है और किसान अपनी मेहनत को आँखों के सामने बर्बाद होता हुआ देख रहा है। किसानों को सरकार पर भरोसा है।अधिकारियों पर नहीं। क्योंकि इनके काम फ़ाइल में और काग़ज़ पर होते हैं।