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भीलटदेव के स्थान पर होती है भक्तों की मन्नते पूरी पर्यटन विभाग द्वारा यहां बडा पार्क और रिसोर्ट

संवाददाता , अनमोल राठौर

नर्मदापुरम जिले में सिवनी मालवा में भीलट देव का स्थान जो कि सिवनी मालवा से मात्र 8 किलोमीटर दूरी पर है बताया जाता है कि यह सघन बहुत पुराना है लगभग500 से 600 वर्षों तक का बताया जाता है यहांमध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा एक सुंदर पार्क और रिसोर्ट भी बनाया है यहाँ पर प्रति वर्ष चैत्र सुदी चौदस के दिन भीलट देव दरबार में मेला भरता है। इस दिन बाबा के भक्त पडिहार के शरीर में भीलट बाबा की पवन आती है, परिहार मंदिर के बाहर नीम के पेड़ से लिपटकर दोनो एक दूसरे से गले मिलते है जिसे हजारों भक्त देखते है, यह पेड उस समय अपने आप बिना आँधी तूफान के तेजी से हिलता है और पड़िहार उस समय हजारों की संख्या में उपस्थित जनसैलाव भक्तों के समक्ष वर्ष भर की भविष्यवाणी करते है जो सच साबित होती है। इसे सुनने के लिये हजारों भक्त उपस्थित होते है और वर्षभर का हाल मौसम हवा पानी, बर्षा, व्यापार, तेजी मंदी, रोग, बीमारी अच्छी बुरी फसल आदि के बारे में बतलाते है। उसी अनुसार क्षेत्र के किसान व्यापारी अपने काम करते है। प्रसिद्ध भीलट देव बाबा के चमत्कारों का ही परिणाम है कि बाबा के स्थान पर दूर-दूर से हजारों भक्त मत्था टेकने आते है। भीलट देव के चरित्र का गुणगान काठी वाले लोग जिन्हें डाकिया भी कहते है वह वृद्धा भक्ति के साथ उपली की थाप पर नाचते गाते हुए गली-गली द्वार-द्वार फेरी लगा बाबा का गुणगान करते है। भक्तों का मानना है कि इस स्थान पर दूर-दूर से आने वाले श्रृद्धालु भक्तों की मन की मुरादे दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है। यूँ तो मेले बहुत भरते है परन्तु सभी का महत्त्व अलग अलग होता है।

भीलट बाबा मेले का विशेष महत्व है। यह मेला नर्मदापुरम (होशंगाबाद) जिले के अलावा अन्य जिले एवं प्रदेश से भी दूर-दूर से श्रृद्धालु भक्त अपनी मनोतियां मानने तथा मनोति पूर्ण होने पर भीलट बाबा के दरबार में वृद्धा से शीश झुकाने आते है। मेले में बच्चों के लिये छोटे बड़े आकर्षक झूले अनेकों नए नए प्रदर्शन के साथ ही व्यापारी दूर-दूर से आकर अपनी दुकाने लगाते हैं। मेले में भजन कीर्तन के साथ ही भीलटदेव गीत सहित अनेक प्रतियोगिताएं एवं अनेकों कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता। है। मंदिर में वर्ष भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है परन्तु मेले के समय भक्तों की लम्बी कतार लगी रहती है। भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले इस प्राचीन भीलट देव मंदिर को चमत्कारिक मंदिर कहा जाता है। इस स्थान पर वर्षों पूर्व घना जंगल था मंदिर के पास मुख्य मार्ग होने से दूर-दूर के यात्री आते जाते समय भीलटदेव बाबा के दर्शन प्राप्त कर आराम करते यहां यात्रियों को अनेक चमत्कार देखने को मिलते है। इन चमत्कारों की दूर-दूर तक चर्चा होने से भक्तों की भारी भीड बढ़ती जा रही है। आज भी भक्तों की मुरादे दर्शनमात्र से पूरी हो जाती है। भक्तों का मनना है कि मत्था टेकने से ही मन की मुरादे शीघ्र पूर्ण होती है। भीलट बाबा के विषय में अनेकों कवदन्तियां है।

बाबा के भक्त बतलाते है कि बाबा की माता जी जिनका नाम मंदाबाई था वह मध्य प्रदेश के हरसूद तहसील के आदिवासी ग्राम में गौली परिवार से सम्बन्धित थी। मेंदावाई अपने विवाह के चालीस वर्ष बाद भी संतान नहीं होने के कारण काफी चिन्तित एवं दुखी थी संतान प्राप्ति के लिए मेंदावाई ने भगवान शंकर एवं माता पार्वती की नियमित रूप से श्रृद्धाभक्ति के साथ पूजा अर्चना करती थी एक दिन मेंदावाई घर पर शाम को आंगन में गौधुली बैला में संतान की चिंता में अपनी गायों के आने का इंतजार कर रही थी उसी समय एक बावा महात्मा आकर पूछने लगे मेंदावाई दुखी क्यों होती हो तुम्हें कौनसी चिंता सता रही है मेंदावाई की आंखों में आंसू भर आए और कहने लगी बावा में निसंतान हूँ यही चिंता सता रही है इतना कहते हुए साधु महात्मा को आदर सत्कार पूर्वक घर में बैठाकर श्रृद्धापूर्वक भोजन कराया आदर पूर्वक भोजन पाकर महात्मा प्रसन्न हुए और कुछ पल के लिए चिंतन करने के पश्चात मंदावाई को आर्शीवाद देते हुए कहने लगे तुम्हें शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी और वह बालक छोटी उम्र से ही असाधारण प्रतिभा का स्वामी होगा वह शंकर पार्वती का अनन्य भक्त होगा। बालक दस वर्ष की उम्र में घर का मोह त्याग कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता हुआ प्रसिद्धी प्राप्त करेग। इस वचन को सुनकर मेंदाबाई ने मन में विचार किया कि में निसंतान होने के कलंक से तो वच जाऊँगी वहाँ से साधु महात्मा तो
इतना कहकर अद्वश्य हो गए परन्तु कुछ दिनों बाद मेंदावाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई जिससे मेंदावाई की खुशी का ठिकाना न रहा। बालक हष्ट-पुष्ट सूर्य की भांति तेजस्वी था उस बालक का नाम भीलट रखा • गया। महात्माजी के बताए अनुसार बालक बचपन से ही काफी कुशाग्र बुद्धि का भगवान शंकर पार्वती की पूजा अर्चना में दिन रात लगा रहता। दस वर्ष की उम्र होने के पश्चात घर त्याग कर यहां वहां रुकते ठहरते हुए बंगाल पहुंचा जहाँ भगवान शंकर पार्वती की धोर तपस्या की। बंगाल में एक तांत्रिक ने बालक के चेहरे पर कम उम्र में भी इतना तेज एवं उसकी प्रसिद्धि से चिढकर उसे मारना चाहा और उस पर अनेक प्रकार के – जादू टोने किए परन्तु बालक का भगवान शंकर की कृपा से कुछ भी नहीं बिगाड़ा। आखिरकार तांत्रिक परेशान हो गया और बालक को सिद्धि प्राप्त हो गई। भगवान की पूजा अर्चना में बंगाली तांत्रिक द्वारा बार बार रूकावट की गई और इन विफल प्रयासों के – कारण बालक का मन बंगाल में नहीं लगा और वहां से वह वापस चल दिए और पचमढ़ी स्थित बडे महादेव भगबान शंकर की शरण में जा पहुंचे बालक को स्वयं भगवान शंकर एवं माता पार्वती नित्य शिक्षा और मार्गदर्शन दिया करते थे। ऐसा भक्त बतलाते है कि -भीलट बाबा ने जिस जिस स्थान पर रात्रि विश्राम -भगवान शंकर के गंण के रूप में किया बह है रोलगांव, – रुदनखेडी, छिदगांव, भीलट देब आदि.

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Author: liveindia24x7

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