ग्रेमी अवॉर्ड विजेता और पद्मभूषण से सम्मानित पं. विश्वमोहन भट्ट का कहना है कि देश में कम लोग बचे हैं, जो शास्त्रीय संगीत अपनाते हैं और बहुत ही कम हैं जो उस पर रिसर्च करते हैं। विश्वमोहन ने ये विचार रविवार को राजस्थान संगीत संस्थान की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वन्दना खुराना की पुस्तक ‘संगीत रिसर्च अकादमी-हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का आधुनिक गुरूकुल’ के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कोलाकाता की संगीत रिसर्च अकादमी के क्रियाकलापों की और इसके संस्थापक अजीत नारायण हक्सर व पं. विजय किचलू की सेवाओं को याद करते हुए कहा कि संगीत रिसर्च अकादमी आज देश में अपनी तरह का एक मात्र गुरूकुल है, जिसने गुरू-शिष्य परंपरा को संस्थागत रूप देकर एक नया मार्ग प्रशस्त किया है।इस अकादमी को देश के नामी कलाकारों ने अपने मार्गदर्शन से चमक प्रदान की व इसे अपने घर की तरह सम्मान दिया। इस मौके पर डॉ. वन्दना खुराना ने कहा कि मैंने संगीत रिसर्च अकादमी के संगीत जगत में चालीस साल के योगदान पर शोध ग्रन्थ लिखा है। अपने शोध ग्रन्थ को पुस्तक रूप देने का मेरा उद्देश्य संगीत रिसर्च अकादमी की ओर से भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में जिस प्रकार का योगदान दिया जा रहा है, उसे संगीत जगत के समस्त विद्वानों एवं विद्यार्थियों के समक्ष उजागर करना है। साथ ही इस पुस्तक को मैं एक उदाहरण के रूप में समस्त कॉरपोरेट-औद्योगिक जगत के समक्ष भी रखना चाहती हूं। इसके बाद पं. विश्वमोहन भट्ट, राजस्थान विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रेम दवे, राजस्थान संगीत संस्थान की प्राचार्य डॉ. वसुधा सक्सेना और संगीत संस्थान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गौरव जैन ने वन्दना खुराना की पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक डॉ वंदना खुराना के शोध प्रबंध पर आधारित है, जिसे उन्होंने प्रोफेसर डॉ. प्रेम दवे के निर्देशन में संपन्न किया था। भारतीय शास्त्रीय संगीत के शीर्षस्थ कलाकार जैसे पंडित अजय चक्रवर्ती, उस्ताद राशिद खान, कौशिकी चक्रवर्ती अकादमी के स्कॉलर रह चुके हैं। इस पुस्तक में इन कलाकारों के अतिरिक्त अन्य प्रसिद्ध विद्वानों के साक्षात्कार भी लिए गए हैं।