मुख्यमंत्री की दस साल पहले की गई बजट घोषणा अब तक पूरी नहीं हो पाई है। बजट घोषणा के अनुसार प्रदेश के छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों में स्पीच थैरेपिस्ट के 18 स्थाई पदों पर भर्ती की जानी थी। एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर, जेएलएन अजमेर, आरएनटी उदयपुर, एसपी बीकानेर, जोधपुर एवं कोटा मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में स्पीच थैरेपिस्ट के स्थाई पदों पर भर्ती नहीं होने युवाओं को नौकरी के अवसर नहीं मिल रहे हैं।
भर्ती नहीं होने का प्रमुख कारण चिकित्सा विभाग (अराजपत्रित) की ओर से स्पीच थैरेपिस्ट के सेवा नियमों का नहीं बनना माना जा रहा है। और सेवा नियमों के नहीं बनने से इन पदों पर भर्ती का मामला भी अटक गया है। यहां तक की राजस्थान मेडिकल एज्युकेशन सोसायटी (राजमेस) की ओर से संचालित मेडिकल कॉलेजों के हाल और भी बुरे हैं।
सेवा नियम नहीं बनने व भर्ती नहीं होने का ये हैं साइड इफैक्ट
सरकार की ओर से सेवा नियम नहीं बनने व स्थाई पदों पर भर्ती नहीं होने से बेरोजगारों का सरकारी नौकरी लगने का सपना पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। हकलाना, तुतलाना, बोलना, सुनने में अक्षम होने की वजह से भाषा की दिक्कत, आवाज का भारी रहने वाले मरीज परेशानी झेलने को मजबूर हैं।
प्रदेश के संविदा कर्मचारियों के भरोसे मेडिकल कॉलेज
दो साल पहले चिकित्सा शिक्षा (ग्रुप-1) ने एक आदेश जारी कर एसएमएस अस्पताल के ईएनटी विभाग में स्पीच थैरेपिस्ट के पदों की सेवाएं सेवा प्रदाता एजेंसी के माध्यम से लेने की स्वीकृति दी है। अब हर जिले में खुल रहे मेडिकल कॉलेज के हिसाब से अब स्पीच थैरेपिस्ट के पदों की संख्या 18 से बढ़कर 100 के पार हो गई हैं।
इस बजट घोषणा के संबंध में मुझे किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं है। यह मामला मेडिकल शिक्षा विभाग से संबंधित है। इस बारे में संबंधित विभाग के अधिकारी ही बेहतर बता सकेंगे।